फोटो गैलरी

Hindi News क्रिकेट रांची का पारा 42 के पार

रांची का पारा 42 के पार

हां गया वह मद्धम सूरा, कहां गयी वह दुपहरिया की चुप्पा आइस-पाइस? बड़हल और आम के टिकोरों को पत्थर मार गिराना और बियावान में पीस-पीस कर चटनी बनाना। खुद खाना, सबको खिलाना, मिल-ाुल कर खेतों में पानी...

 रांची का पारा 42 के पार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
ऐप पर पढ़ें

हां गया वह मद्धम सूरा, कहां गयी वह दुपहरिया की चुप्पा आइस-पाइस? बड़हल और आम के टिकोरों को पत्थर मार गिराना और बियावान में पीस-पीस कर चटनी बनाना। खुद खाना, सबको खिलाना, मिल-ाुल कर खेतों में पानी पटाना। कटी बालियों के बाद नंगे खेतों के खूंटे से टकराकर गिरना और संभलना। अनायास किसी चौपाल में मूंज की बीनी खटिया पर उठंग जाना। कहां गया वह जमाना? इन जाते हुए लम्हों ने जब से किनारा किया है, मौसम की आग अब और चिटकाने लगी है। पारा 42 के पार है। ठिठकी-सहमी, भौंचक सी अनमने कटने लगी है जिंदगी। चिकन पॉक्स से बचने और आम का शरबत पीकर घर से बाहर निकलने की खालिश चेतावनियों की परवाह न करं, तो पारा पप्पी-झप्पी देने के नहीं, सीधे ठोक देने के मूड में है। तवे सी जलती धरती तलवे जला रही है। लाल पलाश गर्मियों में वातावरण की नमी सोखकर और सुर्ख हो जाते थे, अब मौसम की खुश्की से उनकी छांव तले बैठना दुश्वार हो गया है। बड़े मैदानों में सिर तानकर खड़े यूकलिप्टस की चिकनी छाल से होकर घहराती पछुआ वैताल सा शोर करती है। डराती है, दौड़ाती है, खुद कूदती -फांदती बाउंड्री के पार हो जाती है। ललनाओं के गाल सुर्ख हो जाते हैं, तो वे अपनी ओढ़नी पल्लू से सिर पर डाल लेती हैं। पर, गर्मी का पिशाच उन्हें जड़ कर देता है। वे छाये की ओट लेती हैं, तो निगोड़ी धूल का झक्कड़ उनका सौंदर्य हर लेने को आतुर बैठा मिलता है। क्या करं, कहां जायें औरतें। और बच्चे, गर्मी से उनकी तो यारी है। वाटर बॉटल सुड़कते, बेचार अपने पांव मोड़े किसी तरह पापा की बाइक पर बैठकर घर जा रहे होते हैं। इतने में ठेलेवाली आइसक्रीम से नैन मटक्का हुआ, तो ऊंगलियां जिद पर उतारू हो जाती हैं। पापा झिड़कते हैं, चुप बदमाश, सर्दी हो जायेगी। बेचार मन मसोस कर रह जाते हैं। घर की देहरी पर ठहर गयी यह गैरवाजिब गर्मी के हम शहरवाले कभी कायल नहीं रहे। यह ऐसी अतिथि है, जिसकी सेवा को भी जी नहीं चाहता। उम्मीद है, अगले साल जब यह आयेगी, तो पछुआ को मनाकर आयेगी, ताकि इसके थोड़े गीले दामन की छांव में अमिया तले बैठकर हम बेटी की बिदाई, पड़ोस के चूल्हे-चौके और मौसी अंचार की बात खुलकर कर सकें। रांची- 42.2ड्ढr मेदिनीनगर-45.6ड्ढr गढ़वा- 44.5ड्ढr गुमला- 41.2ड्ढr चतरा- 42ड्ढr कोडरमा- 43ड्ढr हाारीबाग- 38ड्ढr जमशेदपुर- 45.1ड्ढr धनबाद- 44.1ड्ढr गिरिडीह- 44ड्ढr बोकारो- 44.

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें