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झाड़-फूंक नहीं, बल्कि इलाज कराएं मिर्गी का

मिर्गी की बीमारी को लेकर लोगों में भ्रांतियां फैली हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह बीमारी होने पर लोग इसे भूत-प्रेत का साया मान बैठते हैं और झाड़-फूंक में लग जाते हैं। ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में...

 झाड़-फूंक नहीं, बल्कि इलाज कराएं मिर्गी का
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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मिर्गी की बीमारी को लेकर लोगों में भ्रांतियां फैली हुई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह बीमारी होने पर लोग इसे भूत-प्रेत का साया मान बैठते हैं और झाड़-फूंक में लग जाते हैं। ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में डॉक्टरों ने कहा कि इस बीमारी का इलाज संभव है और सस्ता भी है। एम्स की डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि मिर्गी आनुवांशिक बीमारी है, यह बात पूरी तरह गलत है। ऐसाीसदी में नहीं होता है। ब्रेन की कोशिका न्यूरॉन्स में इलेक्िट्रकल शॉर्ट सर्किट होने पर मिर्गी का दौरा पड़ता है। ऐसा होने पर मुंह में चम्मच नहीं देना चाहिए। आमतौर पर मिर्गी का दौरा दो मिनट तक होता है। 70 फीसदी लोगों में एक से दो दवा लेने से यह बीमारी नियंत्रित रहती है। दवा से बीमारी ठीक नहीं होने पर सर्जरी से इलाज संभव है। इस बीमारी वाली महिला या पुरुष शादी कर सकते हैं।ड्ढr ड्ढr बंगलुरु के डॉ. एचवी श्रीनिवासन ने बताया कि मिर्गी लाइलाज बीमारी नहीं है। दो से पांच साल बीतने पर इलाज ठीक हो जाती है। लेकिन यदि यह लंबे अर्से से है तो लॉन्ग ट्रीटेमेंट की जरूरत होती है। इस बीमारी के रोगी पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी भी कर सकते हैं। पद्मश्री डा. श्याम नारायण आर्या का कहना है कि मिर्गी के लिए सबसे सस्ती दवा गर्डनल टेबलेट है। मिर्गी चोट लगाने और बच्चों में ऑक्सीजन की कमी से होती है। जांच के बादीसदी मामलों में इलाज संभव है। पद्मश्री डा. गोपाल प्रसाद सिन्हा ने बताया कि जीवन में बेहोशी का दौरा कम से कम एक बार हर व्यक्ित को पड़ता है। भारत के तीन फीसदी लोगों में यह बीमारी है। इससे मुक्ित के लिए कम से कम तीन साल या उम्र भर दवा खानी पड़ती है। दवा खाने की निरंतरता टूटनी नहीं चाहिए। पीएमसीएच की शिशु विभाग की अध्यक्ष डा. संजाता रायचौधरी के अनुसार मिर्गी शब्द को हटाकर इसे कन्वल्शन नाम दिया गया है। 0-5 वर्ष के बच्चों में यह ज्यादा देखने को मिलता है। बच्चों में ज्यादातर ऑक्सीजन की कमी, चोट लगने और बुखार की वजह से कन्वल्शन होता है। सही उपचार कराने पर यह बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाती है। मिर्गी का दौरा पड़े तो लिटाएं करवटड्ढr पटना (हि.प्र.)। मिर्गी का इलाज संभव है, बशर्ते इसका इलाज समय पर और ठीक ढंग से किया जाए। इसके लिए गांव स्तर पर लोगों में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है। सभी जगहों पर एडवांस ट्रीटमेंट उपलब्ध कराने की जरूरत है। ये बातें राज्यपाल आरएल भाटिया ने रविवार को इंडियन एपिलेप्सी एसोसिएशन एवं न्यूरोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित सेमिनार में कहीं।ड्ढr ड्ढr उन्होंने डा. अशोक कुमार द्वारा लिखी हुई पुस्तक एपिलेप्सी अपडेट का विमोचन भी किया। सेमिनार में न्यूरोलॉजी विभाग आईाीआईएमएस के सहायक प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार ने बताया कि एपिलेप्सी मिमिक का अर्थ होता है कि अन्य बीमारियां जो मिर्गी जसी लगती हैं या दिखती हैं, लेकिन वास्तव में मिर्गी से भिन्न होती हैं। इनका इलाज मिर्गी से पूर्णत: अलग होता है। उन्होंने बताया कि कभी-कभी मिर्गी न होते हुए भी रोगी दवा का सेवन कर लेते हैं। कुछ बीमारियां मिर्गी जसी ही महसूस हैं, इसलिए इनका सही पहचान करना जरूरी है।ड्ढr डॉ. एचवी श्रीनिवासन ने कहा कि मिर्गी का इलाज संभव है। मिर्गी का मरीा सब कुछ कर सकता है। यहां तक की वाहन भी चला सकता है। डा. एनके अग्रवाल ने कहा कि रोगियों को झाड़-फूंक, चमड़े के चप्पल-जूते को सुंघाने आदि से बचना चाहिए। मिर्गी आने पर रोगी को करवट लेटा देना चाहिए। दवा का कोर्स कैसे चलेगा, यह इस बात पर निर्भर करगा कि रोगी की स्थिति क्या है। मिर्गी ठीक करने के लिए अब तो सर्जरी भी होने लगी है। सेमिनार में कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी गईं। इस अवसर पर पद्मश्री डॉ. सीपी ठाकुर, डॉ. गोपाल प्रसाद, डॉ. प्रो. एमएम मेंहदीरता, प्रो. पी सतीश चन्द्र, डॉ. जे कलिता, डॉ. मंजरी त्रिपाठी, डॉ. पी शरत चन्द्रा, डॉ. ए चटोपाध्याय, डॉ. एचआरपी वर्मा, पद्मश्री डॉ. एसएन आर्या, डॉ. शेखर कुमार, डॉ. अनुज कुमार सिंह, डॉ. एसएम रोहतगी, डॉ. आरबी शर्मा, डॉ. आरपी चौधरी, डॉ. जेकेएल दास, डॉ. अजीत कुमार सिन्हा एवं डॉ. निगम प्रकाश सहित कई चिकित्सक आदि उपस्थित रहे।

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