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अफगानिस्तान : बढ़ता भ्रष्टाचार और तालिबान

अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि आतंकवादियों का गढ़ पाकिस्तान है। उनके सरगना पाकिस्तान में ही छिपे हुए हैं। यह भी सच है कि अफगानिस्तान में तालिबानों का खौफ बढ़ गया है। अफगानिस्तान की सरकार...

 अफगानिस्तान : बढ़ता भ्रष्टाचार और तालिबान
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि आतंकवादियों का गढ़ पाकिस्तान है। उनके सरगना पाकिस्तान में ही छिपे हुए हैं। यह भी सच है कि अफगानिस्तान में तालिबानों का खौफ बढ़ गया है। अफगानिस्तान की सरकार तालिबानों के सामने नतमस्तक हो गई है। जसे भारत में आंध्र, झारखंड और छत्तीसगए़ में अनेक ऐसे जिले हैं जहां पर नक्सलपंथियों की हुकूमत चलती है, उन्हीं की सरकार है और उन्हीं का न्यायालय है। उसी तरह अफगानिस्तान में अनेक ऐसे जिले हैं, जहां अफगान सरकार की एक नहीं चलती है और हुकूमत भी तालिबानों की ही है तथा न्याय के लिए भी लोग तालिबानों के पास ही जाते हैं। इन जिलों में कट्टर इस्लामी कानून शरीयत चलता है। अमेरिका और भारत सहित अनेक देश जी-ाान से यह प्रयास कर रहे हैं कि अफगानिस्तान का जल्दी से जल्दी आर्थिक विकास हो जिससे वर्षो के गृहयुद्ध से पीड़ित जनता राहत की सांस ले सके। परंतु विकास पूरी तरह अवरुद्ध इसलिए हो गया है कि वहां का सरकारी तंत्र अत्यंत ही भ्रष्ट है। राष्ट्रपति कराई स्वयं ईमानदार हैं, परंतु उनके भाई भ्रष्टाचार में लीन हैं। कराई के अन्य रिश्तेदार भी भ्रष्ट तरीकों से पैसे बना रहे हैं, जिसका बहुत बुरा असर वहां के प्रशासन पर पड़ रहा है। कहा जाता है कि कराई का शासन काबुल से बाहर नहीं है और काबुल में भी वे इतने डर-सहमे रहते हैं कि अपने महल में ही सिमट कर रह जाते हैं। हाल में तालिबानों ने उनके महल के पास एक सार्वजनिक समारोह में उन पर जानलेवा हमला किया था। परंतु वे बाल-बाल बच गए। अफगानिस्तान की नाजुक हालत को देख कर अमेरिका कराई के बदले किसी अन्य को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनाना चाहता है। अफगानिसतान में आम चुनाव सितम्बर-अक्टूबर के महीने में होने वाला है। जसे ही कराई को यह पता चला कि अमेरिका उन्हें हटा कर किसी अन्य व्यक्ित को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति बनाना चाहता है तो उन्होंने तुरंत आम चुनाव का ऐलान कर दिया। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा को जब यह हकीकत का पता लगा तो उन्होंने तुरंत कराई को फोन करके कहा कि वे मध्यावधि चुनाव के अपने आदेश को वापस लें और चुनाव समय पर ही होने दें। लगता है कराई और अमेरिकी प्रशासन में कोई अलिखित व गुप्त समझौता हुआ जिसके मुताबिक कराई ने आम चुनाव का अपना आदेश वापस ले लिया और संभवत: कराई को यह आश्वासन मिला कि जब भी अफगानिस्तान में आम चुनाव होगा वे ही देश के फिर से राष्ट्रपति निर्वाचित किए जाएंगे। देश में भ्रष्टाचार का यह हाल है कि अमेरिकन ट्रक जिनमें पेट्रोल के टैंक भर रहते हैं उसमें से वहां के सरकारी कर्मचारी जबरन पेट्रोल निकाल लेते हैं और उस पेट्रोल को काले बाजार में बेच देते हैं। गजनी जसे प्रांत से जहां से अफगानिस्तान के बाहर सामान आ-ाा सकते हैं, वहां पर छोटी-छोटी सरकारी पोस्टिंग के लिए लाखों डॉलर उच्चाधिकारी को रिश्वत में दिया जाता है। फिर जो अफसर वहां पर नियुक्त होते हैं वे अफीम की तस्करी करके करोड़ों डॉलर कमा रहे हैं। अफीम की तस्करी से जो पैसा तालिबानों के हाथ आ रहा है, उससे वे खतरनाक हथियार खरीद रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबानों का खौफ इतना अधिक बढ़ गया है कि उनके डर से कोई भी मुंह खोल नहीं पाता है। कहा तो यहां तक जाता है कि सरकारी सिविलयन अफसर और पुलिस के अफसर अपनी जान की रक्षा के लिए तालिबानों को ‘प्रोटक्शन मनी’ देते हैं। अफगानिस्तान के उन अफसरों पर जो भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं, वहां पर उनके खिलाफ कोई मुकदमा दायर नहीं हो सकता है। वे कानून से ऊपर हैं क्योंकि उन्हें तालिबानों का संरक्षण प्राप्त है। अमेरिकनों ने स्थानीय अफगानी पुलिस जवानों को गुरिल्ला लड़ाई में प्रशिक्षित करने का प्रयास किया। परंतु इन जवानों की दिलचस्पी इस तरह की ट्रेनिंग में नहीं है। वे तो देर-सबेर तालिबानों के कैंप में जाकर उनका अंग बन कर अफगानिस्तान की जनता को लूटना चाहते हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि अफगानिस्तान में तालिबानों का ऐसा खौफ है कि 50 तालिबान 5000 अफगानी पुलिस कर्मियों को मिनटों में भगा सकते हैं। यही कारण है कि अफगानिस्तान में स्थापित संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने अपने उच्च अधिकारियों को बार-बार लिखा है कि अफगानिस्तान में तबतक विकास नहीं हो सकता है, जबतक तालिबान का जड़ से सफाया नहीं हो जाए। प्रश्न यह है कि जबतक मुट्ठी भर जनता की भी सहानुभूति तालिबानों के साथ रहेगी और जबतक अफीम की खेती वहां नहीं रुकेगी तथा जबतक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकेगा, अफगानिस्तान का भविष्य अंधकार में ही रहेगा। अफगानिस्तान में अशांति से न केवल पाकिस्तान प्रभावित होगा, बल्कि देर-सबेर उसका असर भारत पर भी अवश्य पड़ेगा।ड्ढr ड्ढr लेखक पूर्व सांसद और पूर्व राजदूत हैं।ं

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