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कन्हैया की नगरी में हर खेमा बेचैन

न्हैया की नगरी में हर खेमा बेचैन है। मौजूदा एमपी कांग्रेस के मानवेन्द्र सिंह सीट बचाने को बैचेन हैं। छोटे चौधरी अजित सिंह के बेटे व रालोद-भाजपा गठाोड़ के प्रत्याशी जयंत चौधरी सीट जीतकर परिवार की...

 कन्हैया की नगरी में हर खेमा बेचैन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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न्हैया की नगरी में हर खेमा बेचैन है। मौजूदा एमपी कांग्रेस के मानवेन्द्र सिंह सीट बचाने को बैचेन हैं। छोटे चौधरी अजित सिंह के बेटे व रालोद-भाजपा गठाोड़ के प्रत्याशी जयंत चौधरी सीट जीतकर परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने को बेचैन हैं। बसपा के श्याम सुंदर शर्मा की बेचैनी यह है कि क्या वे वही करामात कर पाएँगे, जो छह बार से विधानसभा चुनावों में करते आ रहे हैं। सवाल सबके मन में है। जीत को लेकर कोई आश्वस्त नहीं दिखाई दे रहा। आडवाणी, राजनाथ, सोनिया, मायावती समेत कई बड़े नेता अपने प्रत्याशियों के लिए जोर लगा चुके हैं। जनसम्पर्क के दौरान सभी दल जातीय वोट बैंक से लेकर रिश्तों पर जोर दे रहे हैं। यहाँ भितरघाती भी सक्रिय हैं। इसका सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को होता दिखाई दे रहा है। कुछ ब्राह्मण सजातीय प्रत्याशी होने के कारण भाजपा छोड़ बसपा का समर्थन कर रहे हैं। लेकिन जानकार कहते हैं कि मतदान के दिन यानी सात मई को गर्मी यूँ ही रही तो इस सीट का फैसला ग्रामीण इलाके के मतदाता करंगे। मौसम नम रहा तो शहर का योगदान भी परिणाम पर दिखेगा।ड्ढr पूर राज्य की तरह किसान, गरीब के मुद्दे यहाँ से गायब हैं। सभी अपनी जीत जातीय गणित के आधार पर सुनिश्चित मान रहे हैं। आँकड़े हैं ही कुछ ऐसे कि कोई भी भौंचक रह जाए। मसलन कांग्रेस अपना गणित यह बता रही है कि नगर पालिका परिषद मथुरा के चेयरमैन श्याम सुंदर उपाध्याय कांग्रेस के टिकट पर चुने गए, शहर विधायक प्रदीप माथुर भी कांग्रेसी हैं और सांसद मानवेन्द्र सिंह कांग्रेसी है हीं। ऐसे में सवा दो लाख क्षत्रिय, एक लाख से ऊपर मुसलमान, परम्परागत ब्राह्मण और दलित वोट के साथ ही हर जाति-धर्म से कुछ न कुछ वोट व्यक्तिगत रिश्तों के आधार पर मिलने वाले हैं। ऐसे में मानवेन्द्र सिंह को दोबारा संसद में जाने से भला कौन रोक पाएगा।ड्ढr कुछ इसी तरह बसपा के तर्क हैं-यह कि श्याम सुंदर शर्मा छह बार विधान सभा चुनावों में जीत चुके हैं, लिहाजा आत्मविश्वास से लबरा हैं। ढाई लाख ब्राह्मण, सवा दो लाख जाटव, कबीना मंत्री चौ. लक्ष्मी नारायण के प्रभाव से जाट, बड़ी संख्या में मुस्लिम के अलावा उनके व्यक्ितगत सम्पर्क के विभिन्न समुदायों के वोट हाथी पर पड़ने के दावे हैं। अगर वाकई यह हुआ तो बसपा इस सीट से पहली बार जीत दर्ज करगी। पर इससे इतर जयंत चौधरी समर्थकों के दावे भी कुछ कम नहीं। पहला दावा पिछले चुनाव का। जब रालोद के टिकट पर ज्ञानवती सिंह को 1.44 लाख तथा भाजपा प्रत्याशी और तीन बार लगातार एमपी रहे तेजवीर सिंह को एक लाख से अधिक वोट मिले। इस बार दोनों दल मिलकर लड़ रहे हैं। संघ लगा हुआ है। आडवाणी, राजनाथ, अरुण जेटली के अलावा कई अन्य कद्दावर भाजपाई मतदाताओं को पटाने के लिए आ चुके हैं।ड्ढr भाजपा और रालोद का तर्क है कि जयंत नौजवान हैं। पढ़े-लिखे हैं। चौधरी चरण सिंह के पोते हैं। इनके साथ पौने तीन लाख जाट वोट हैं। इस बार बँटवारा भी नहीं होगा। बसपा के वोट बैंक की तरह जाट भी जुटकर वोट करता है। भाजपा का आधार सवर्ण वोटर तो उनके साथ है ही, वैश्य समाज के सवा लाख वोटर भी जयंत के साथ खड़े हैं। बाजना में किसानों के लिए रालोद बड़ा आंदोलन खड़ा करने में कामयाब रहा है। इस तरह रालोद-भाजपा अपने प्रत्याशी की जीत पक्की मानकर चल रहे हैं। जयंत के साथ पूर चुनाव में लगे रहे एमएलसी मुन्ना सिंह कहते हैं कि इस बार जयंत के पक्ष में हवा चल रही है। लोगों का प्यार-समर्थन भी मिल रहा है। हमारी टक्कर केवल बसपा से है। कांग्रेस इस बार तीसर नम्बर की पार्टी साबित होगी।ड्ढr श्रीकृष्ण जन्म सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा कहते हैं पेयजल, सिंचाई, खाद-बीज वितरण में धाँधली जसे मुद्दे इस चुनाव में किसी की चिंता का विषय नहीं हैं। आमजन से जुड़ी जीवनदायिनी यमुना का प्रदूषण भी चुनाव में विषय नहीं। बालाजी कम्प्यूटर्स के दिनेश गोयल कहते हैं कि किसानों, गरीबों के मुद्दे कोई नहीं उठा रहा। कहते हैं सात मई को ही तय करंगे कि वोट किसे देना है। मौसम सही रहा तो जाएँगे नहीं तो इस तपती गर्मी में कौन जाएगा वोट डालने। शिक्षक डॉ. अशोक बंसल की मानें तो इस बार मथुरा में बदलाव की बयार चल रही है।

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